तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-1) - पहली मुलाकात Priya Maurya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-1) - पहली मुलाकात

कहते है की सच्ची मोहब्बत किसी के रंग -रूप, वर्ग-धर्म, देखकर नही होती है। सच्ची मोहब्बत तो सीरत से होती है। इश्क़ इबादत होता है अगर एकबार हो जाये तो भूलना ना मुमकिन सा हो जाता हैचलिये आपको ले चलते है ऐसे ही मोहब्बत की दुनिया में जिसमें हर किसी को एक दुसरे से प्यार है लेकिन कुछ समाज की बन्दीसे तो कुछ आपसी रंजिशे आ जाती हैं विघ्न बन के। समाज के बनाए दायरों और आपसी रंजिशो से ऊपर उठ क्या यह बेपनाह मोहब्बत करने वालीं अद्भुत जोडियाँ मिल पायेंगी या सच्चे प्रेमियों की एक बार फिर बली चड जायेगी?"

रामगढ़ (शाम का दृश्य) -

बारिश का मौसम होने के कारण कही कही गढो मे पानी भरा था पूरे आकाश मे बादल छाये थे लेकिन सूरज भी उनके पीछे छुप छुप कर अपनी लालिमा बिखेर रहा था।
चिडिया की चहचाहट और गायों की रंभने की आवाज से पूरे गाव का दृश्य दर्शनीय था। बच्चे भी खेलने मे मग्न थे। लड़को मे कोई गुल्ली डंडा तो कोई कन्चा खेला रहा था। छोटी-छोटी लड़किया भी चिभ्भियो से खेल रही थी।

कुछ औरते कुएं से पानी खिंच रही थी तो कुछ बाल्टी और घडे मे भर कर ले जा रही थी। पुरुष भी अपने अपने काम से लौट रहे थे। कुछ किसान अभी भी खेत मे हल चला रहे थे तो कुछ धान की रोपई। जो रोपई कर रहे थे उनकी औरते मुह मे पल्लू को एक तरफ से दबाए कलेवा ले कर मेड़ पर बैठी थी। तो यह था गाँव का सबसे दक्षिणी टोला जहा सबसे निम्न वर्ग के लोग रहते थे।

वही एक लड़के और लड़कियो का समूह गुल्ली डण्डा खेल रहा था।
एक बच्चा-" अरे अस्मिता दी थोड़ा तेज मारो दूर तक जाये।"
अस्मिता-" अरे बाबा मार तो रही हूं किसीको लग जायेगी सब यही आ जा रहे है।"

उर्मिला चाची उधर से पानी लिये आती है और तेजी से अपनी बगल वाली औरत से बोलती है-" ना जाने कितने बड़ी हो गयी है घर पर चूल्हा चौका करना चाहिये तो यहाँ पर आकर बच्ची बन रही है।"
दुसरी औरत भी अस्मिता को सुनाते हुये -" क्या करे जीजी माँ होती तब ना कुछ गुण सिखाती।"
उर्मिला-" छोड़ो इसका बाप खुद बड़े मालिक से चोरी छुपे इसे पढ़ा रहा है तो लड़की बिगडेगी ही ना।"

अस्मिता भी सुन उनके पास गुस्से से जाती है -" चाची आप लोग तो चुप ही रहिये हमारे बाबा ने हमें कितना गुण सिखाया है वो आप लोगो के दिमाग के परे है।"
तभी एक औरत-" हाँ यही लड़ना सिखाया है ना।"

अस्मिता अब गुस्से मे कुछ बोलने ही वाली थी की तभी एक लड़की आ कर बोलती है-" अरे दीदी आप चलो ना खेलने क्या इनके मुँह लग रही हो।"
वो खिंच कर अस्मिता को ले जाने लगती है।
इधर उर्मिला जोर से चिल्ला कर उस लड़की को बोलती है-" हाँ तू भी सीख इसके साथ रह कर । तेरी माई को अभी बताती हू की क्या गुण सिखा रही हो लड़की को।"

अस्मिता आकर सभी बच्चो के साथ खेलने लगती है तभी पूरे गाँव मे अफरा तफरी का माहोल हो जाता है ।
एक बूढ़ा आदमी दौड़ते हुये बोल रहा था-" अरे सभी जल्दी अपने अपने घरों मे भाग जाओ रास्ता खाली करो हवेली से कोई आ रहा है।"

इतना सुनते ही सब रास्ता खाली करने लगते है और लोगों में खुसर फुसर शुरु हो जाती है। उर्मिला भी अपने झोपड़ी के सामने खम्भे के पास खड़ी हो एक औरत से बोलती है-" हवेली से हमारे टोले मे कौन आ रहा है ?"
वो औरत-" पिछ्ले कुछ साल से कोई नहीं आया था हमसे कोई गलती हो गयी क्या की हवेली से कोई आ रहा है।"

सभी लोग डरे सहमे थे वही रास्ते के बिचोबीच अभी भी अस्मिता और उसकी टोली गुल्ली-डंडा खेल रही थी।
एक लड़का -" दी चलो जल्दी हवेली से शायद कोई आ रहा है।"
अस्मिता-" माना की हम उनके जैसे शक्तिशाली और पहुच वाले नही है लेकिन इसका क्या मतलब वो लोग हमसे ऐसा व्यवहार करेंगे हम तो नही हटने वाले और तुम लोग भी ना डरो हम है ना।"

इतना कह अस्मिता गुल्ली को नीचे रखती है और जोर से मारती है और वो जाकर सीधे सामने से एक हंटर गाड़ी के बोनट पर जा लगती है। हंटर गाड़ी होने की वजह से ऊपर की छत और सीसे नही थे गाड़ी मे जिससे गाड़ी मे बैठे लोगो के साथ साथ सब कुछ देखा जा सकता था। एक आदमी गाड़ी चला रहा था और उसकी बगल मे एक और शक्स बैठा था। शलीके से बनाए गये बाल कानों मे छोटे-छोटे सोने के तब्स काली गहरी आँखे पतले होंठ और तीखी नाक के साथ ही साथ गठीले बदन से उसकी शानो-शौकत का अंदाजा लगाया जा सकता था।

गुल्ली से लगते ही गाड़ी चला रहा आदमी जिसका नाम कृष्णा था वह झटके से ब्रेक मारता है और गाड़ी रुक जाती है। वो गुस्से मे गाड़ी से उतर कर - ये लड़की तू जानती भी है की कौन है हम और तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे सामने आने की ।"
अब तो सबकी सांसे अटक गयी थी।अस्मिता भी बोलती है-" अरे यह हमारा टोला है हम कही भी रहे डरते होंगे सब हवेली वालों से हम नही डरते समझे आप।"
कृष्णा और भी गुस्से मे -" पता भी है यह कौन है सिर्फ यह हवेली के नही बल्कि पूरे जिले के सरकार है। आज ही शहर से आये है हमारे छोटे मालिक ।"

छोटे मालिक नाम सुन अस्मिता -" कौन छोटे मालिक वो वीर सिंह जी।" वो आदमी -" नही हमारे सबसे छोटे मालिक ठाकुर आदित्य सिंह जी है।"

शायद गाँव के लोग अब कुछ समझ जाते है की यह हवेली के छोटे बेटे है जो शहर गये थे बैरिस्टरी की पढ़ाई करने । अब सबको डर लग रहा था की अब अस्मिता का क्या होगा सभी छुप छुप के देख रहे थे।

अस्मिता जब ठाकुर आदित्य सिंह नाम सुनती है तो गाड़ी मे देखती है जैसे ही दोनो की नजरे टकराती है अस्मिता उसके आँखो में खो सी जाती है वही आदित्य जैसे ही अस्मिता को देखता है उसकी नजरें भी उसके नयन- नक्ष मे खो जाती है। सफेद सूट निचे नीली सलवार और कंधे से होते हुये दुसरी कमर की ओर बेतरतीब से बंधा नीला दुपट्टा , काली चमकीली पनियल सी आँखे मानो अभी छलक जायेंगी , सुर्ख लाल रंग के पतले होठ छोटी सी नाक, ऊपर से सूरज की किरण पडने की वजह से चमकता हुआ चांदी सा चेहरा जिसपर कमर तक चोटियो मे गुथे बाल जो की आगे की ओर थे और कुछ बालों की लटे जो की हवा की वजह से उसके चेहरे पर आ रही थी। क्या खूब भा रहे थे उसके ऊपर।

आदित्य के दिलो मे हलचल मचाने के लिये इतना ही काफी था। उसके दिल से एकबार के लिये आवाज आई-

" तेरे चेहरे मे भी क्या नशीली कशिश है

थोडी दिल की तो थोडी खुदा की भी रन्जिस है।

पहली मुलाकात मे ही गजब भा गयी।

मेरी नजरों में भी तेरी तलब छा गयी।"

क्रमश: